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2 बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति बनने वाले सर सुंदरलाल पुण्यतिथि विशेष

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– 2 बार संभाल चुके इलाहाबाद विश्वविद्यालय (Allahabad Univrsity)के कुलपति की कमान

–  बीएचयू (Banaras Hindu University)के संस्थापक कुलपति का  दायित्व.

 

सर सुंदर लाल (Sir Sunder Lal, जन्म- 21 मई, 1857, नैनीताल, उत्तरांचल; मृत्यु- 13 फ़रवरी, 1918, इलाहाबाद) प्रसिद्ध विधिवेत्ता और सार्वजनिक कार्यकर्ता थे. वे देश के विकास के लिए औद्योगीकरण और शिक्षा प्रसार को उन्नति के लिये आवश्यक समझते थे.

सर सुंदर लाल का जन्म उत्तरांचल के नैनीताल जिले के जसपुर नामक स्थान पर 21 मई, 1857 ई. में हुआ था. उनका नागर ब्राह्मण परिवार गुजरात से आकर यहीं बसा था. उन्होंने पहले वकालत की परीक्षा पास की और फिर कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक बनने के बाद वकालत करने लगे. अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने इस क्षेत्र में शीघ्र ही बड़ी सफलता अर्जित कर ली. सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी थी.

सर सुंदर लाल उच्च पदों पर आसीन रहे. वे अवध के ज्यूडिशियल कमिश्नर और इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court)के जज रहे. तीन बार वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के और 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रथम वाइस चांसलर बने. इस विश्वविद्यालय की स्थापना में वे मालवीय जी के बड़े सहायक थे.

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हिन्दू आचार-विचार में निष्ठा रखने वाले सर सुंदर लाल संवैधानिक तरीकों से देश की स्वतंत्रता के समर्थक थे. वे देश की समृद्धि के लिए औद्योगीकरण को आवश्यक मानते थे और शिक्षा प्रसार को उन्नति का साधन समझते थे. सर सुंदर लाल का कांग्रेस से उसकी स्थापना के समय से ही संबंध था. मोतीलाल नेहरू, मालवीय जी, एनी बीसेंट आदि उनके मित्र और सहयोगी थे. कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन, 1910 की स्वागत समिति के वही अध्यक्ष थे.

 

इन्होंने 1876 में म्योर कालेज की स्थापना के शुरुआती वर्षों में दखिला लिया. उस समय आगस्टस हैरिसन म्योर कालेज के प्रिंसिपल थे. 1880 में उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की वकील की परीक्षा उत्तीर्ण की. 1906 से 1908 तक वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पहले भारतीय कुलपति रहे. और दूसरी बार 1912 से 1917 तक उन्होंने यह दायित्व संभाला. एक अप्रैल 1916 से 13 अप्रैल 1918 तक वह बीएचयू के संस्थापक कुलपति भी रहे. 13 फरवरी 1918 को इलाहाबाद Allahabad (अब प्रयागराज Now Parayagraj) 60 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.

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सादगी की मिसाल

एक बार एक यूरोपियन महिला उनसे मिलने सिविल लाइंस स्थित आवास पहुंची. बागबानी का शौक रखने वाले सर सुंदरलाल(Sir Sunder Lal) बनियान और लुंगी लपेटकर हाथ में खुरपी लिए क्यारी से घास निकाल रहे थे. महिला ने उन्हें माली समझकर सर सुंदरलाल को बुलाने का आग्रह किया. उन्होंने सादगी के साथ बैठाया और भीतर आकर कपड़े बदले. फिर हाल में जाकर अभिवादन किया और आने का प्रायोजन पूछा. महिला उन्हें देखकर अचंभित रह गई. अपने व्यवहार के लिए खेद जताते हुए कहा पहचान न पाने के कारण माली का संबोधन किया. बीच में ही टोकते हुए उन्होंने कहा कोई बात नहीं…सीख दिया कि व्यक्ति का मूल्यांकन कपड़ों से नहीं करना चाहिए. उन्होंने यह बात इस लहजे में कही कि महिला शर्मिंदा भी न हो.

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