प्रयागराज का इकलौता बिना मूर्ति वाला मंदिर
- बिना मूर्ति वाला मंदिर
- शक्तिपीठ मंदिरों में एक
- इन्हीं के नाम पर एक मोहल्ला आबाद
वैसे तो हरेक मंदिरों में आराध्य की मूर्ति,प्रतिमा को पूजा जाता है और लगभग सभी मंदिरों में ईश्वर की मूर्ति होती भी है लेकिन प्रयागराज में एक ऐसा बिना मूर्ति वाला मंदिर है जहां हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.
बिना मूर्ति के मंदिरों की कल्पना करना अपने आप में एक अजूबा है.
लेकिन संगम नगरी प्रयागराज में एक ऐसा मंदिर मौजूद है जिसमें मूर्ति नहीं बल्कि इस चीज की पूजा करते हैं श्रद्धालु…..
दरअसल पौराणिक कथा के अनुसार सती जब अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा दामाद भगवान शिव का अपमान न सह सकीं तो उन्होंने नाराज होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था. जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह उनके शव को लेकर क्रोध में विचरण करने लगे. तब माता सती से भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काट दिया. चक्र से कटकर जिन 51 स्थान पर सती के अंग गिरे, वह पावन स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ.
बिना मूर्ति वाला मंदिर है प्रयागराज का अलोप शंकरी शक्तिपीठ
ऐसे ही प्रयागराज में अलोपशंकरी (Alop Shankari Devi Shaktipeeth Mandir) का मंदिर है जिनके नाम पर यहां अलोपीबाग (Alopi Bagh) मुहल्ला आबाद है.
माता सती की दाहिनी कलाई प्रयागराज (Prayagraj) के इस मंदिर वाली जगह पर गिरने के बाद अलोप यानी अदृश्य (लुप्त) हो गया था इसी कारण इस शक्तिपीठ को अलोपशंकरी (Alop Shankari Shaktipeeth) कहा जाता है.
इस मंदिर के गर्भगृह में एक चबूतरा बना है जिसमें एक छोटा सा कुंड है. कुंड के ऊपर लाल चुनरी या कपड़े से ढका एक पालना या झूला रस्सी के सहारे लटकत रहता है. प्रचलित दंत के कथा अनुसार मां सती का दाहिनी कलाई इसी स्थान पर गिरा था जहां पर कुंड है. इस कुंड के पवित्र जल का श्रद्धालु आचमन करते हैं.
मूर्ति नहीं श्रद्धालु इसकी करते हैं पूजा
प्रयागराज (Praygaraj) के इस अनूठे मंदिर में भक्त किसी मूर्ति की नहीं बल्कि पालने की पूजा करते हैं.नवरात्र में इस मंदिर में माता रानी का श्रृंगार तो नहीं होता लेकिन उनके सभी स्वरूपों का पाठ किया जाता है. नवरात्र के दौरान यहां काफी भीड़ होती है.
पुराण में वर्णित कथा के मुताबिक शिवप्रिया सती के दाहिने हाथ की उंगली जब यहां गिरी थी तो उस वक्त यहां एक कुंड यानी तालाब हुआ करता था.खास बात यह है इस शक्तिपीठ (Shaktipeeth Mandir) में देवी मां की कोई मूर्ति नहीं है और श्रद्धालु एक पालने की पूजा करते हैं. देश के विभिन्न हिस्सों से यहां श्रद्धालु पहुंचकर इस पालने को देवी मां का दिव्य स्वरूप मानकर इसकी आराधना करते हैं.
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