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Kumbh: कुंभ मेला कब और क्यों लगता है?

 Kumbh Kab Lagta Hai ? Kumbh Kyo Lagta Hai

Kumbh कुंभ का मेला 12 साल में एक बार क्यों लगता है?

 

कुम्भ (Kumbh Mela) हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल प्रयाग (Allahabad/Prayagraj), हरिद्वार (Haridwar), उज्जैन (Ujjain) और नासिक (Nasik) में एकत्र होते हैं और नदी (Sangam) में स्नान करते हैं. इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति १२वें वर्ष तथा प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्धकुम्भ भी होता है. 2013 का कुम्भ प्रयाग (Kumbh Prayagraj) में हुआ था. फिर 2019 में प्रयाग में अर्धकुम्भ मेले का आयोजन हुआ.

‘कुम्भ’ का शाब्दिक अर्थ “घड़ा” है.वैदिक ग्रन्थों में पाया जाता है.इसका अर्थ,अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है. मेला शब्द का अर्थ है, किसी एक स्थान पर मिलना, एक साथ चलना,सभा में या फिर विशेष रूप से सामुदायिक उत्सव में उपस्थित होना और इस प्रकार, कुम्भ मेले का अर्थ है “अमरत्व का मेला”.

कुंभ प्रयागराज/इलाहाबाद

कुंभ के नामकरण की कथा (Story Of Kumbh)

कुंभ (Kumbh) का अर्थ है घड़ा है और यह एक राशि का भी नाम है.पुराणों में एक कथा है,जब समुद्र मथा गया और उसमें से अन्य वस्तुओं के साथ अमृत का एक कुंभ भी निकला, तो देवतागण उसको लेकर भागे और दानवों ने उनका पीछा किया.बारह दिन तथा बारह रात्रि (जोकि मानवीय 12 वर्षों के बराबर है) तक यह निरंतर यह दौड़ होती रही और इसी में वह कुंभ चार स्थानों में पृथ्वी पर गिर पड़ा अर्थात् हरिद्वार, प्रयाग,नासिक और उज्जैन में.

वृहस्पति, चंद्रमा, सूर्य तथा शनि ने उस कुंभ की रक्षा की थी.उसी घटना के स्मारक रूप में इन चारों स्थानों में बारी-बारी से हर बारहवें वर्ष कुंभ लगता है.

प्रयागराज में कुंभ कब माना जाता है?( Prayagraj Kumbh)

कुंभ (Kumbh) पर्व भारतीय संस्कृति व धार्मिक परम्परा का एक सबसे पुराना महापर्व है. भारतीय ज्योतिषशास्त्र में वृहस्पति को ज्ञान का,सूर्य को आत्मा का और चंद्रमा को मन का प्रतीक माना गया है. यही कारण है कि कुंभ का पर्व इन ग्रहों की एक विशेष स्थिति में ही आयोजित होता है. सौर मण्डल के तीन ग्रहों की स्थिति को समुद्र मंथन से उत्पन्न “अमृत कुंभ” के साथ जिस प्रकार जोड़ा गया है.उसके पीछे एक सहज चिन्तन यह है कि इन ग्रहों की विशेष स्थिति में नदियों के जल में भी एक विशेष जीवनीय गुण यानी ‘अमृत’ आ जाता है, जिससे मन की शुद्धि के साथ आध्यात्मिक विकास तो होता ही है, साथ ही निरोगता आदि शारीरिक लाभ व लौकिक लाभ भी प्राप्त होता है. फिलहाल जब वृहस्पति वृष राशि में और चंद्रमा तथा सूर्य मकर में होते हैं, तो ऐसा योग प्रयाग में ‘कुंभ’ (Prayag Kumbh) कहलाता है.

समुद्र मंथन (Samudra Manthan) से निकले अमृत कुंभ की रक्षा में पांच देवताओं ने विशेष श्रम किया. असुरों से जब कुंभ के लिये छीनाझपटी हो रही थी तो चन्द्रमा ने उसे गिरने नहीं दिया, सूर्य ने उसे फूटने से बचाया, वृहस्पति ने दैत्यों से रक्षा की और शनि ने इन्द्र के भय से रक्षा की.इसीलिए इन ग्रहों के योग से ही कुंभ का योग होता है. प्रयाग कुंभ के सम्बन्ध में लिखा है-

मकरे च दिवानाथे वृषभे च बृहस्पतौ।
कुंभयोगो भवेत् तत्र प्रयागेह्यति दुर्लभः।।

माघे वृषगते जीवे मकरे चन्द्रभास्करौ।।

अमावस्यां यदा योग: कुम्भाख्यस्तीर्थनायके।।

माघ का महीना हो, अमावस्या तिथि हो वृहस्पति वृष राशि पर हों और सूर्य चन्द्रमा मकर राशि पर, तब तीर्थराज प्रयाग में अत्यंत दुर्लभ कुंभ योग होता है.

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