Prayagraj Old Naini Bridge: एक ऐसा पुल जिसपर कार,बाइक के ऊपर ट्रेनें दौड़ती हैं,नीचे बोट
Prayagraj Old Naini Bridge: एक ऐसा पुल जिसपर कार,बाइक के ऊपर ट्रेनें दौड़ती हैं,नीचे बोट
प्रयागराज के दक्षिणी हिस्से में यमुना नदी पर बना पुराना पुल अपने आप में अनोखा ब्रिज है.ओल्ड नैनी ब्रिज (Old Naini Bridge) के नाम से विख्यात यह ब्रिज देश के सबसे लंबे और पुराने पुलों में तो एक है ही साथ ही साथ अनूठा भी है. प्रयागराज शहर को नैनी रेलवे जंक्शन व दूसरे क्षेत्रों से जोड़ने वाला यमुना ब्रिज़ एक डबल डेक वाला स्टील पुल है.इसकी खास बात यह है कि इसमें 17 पिलर होने के साथ ही यह एक जूते पर टिका है…. आगे आप पढ़िए ओल्ड यमुना ब्रिज प्रयागराज (Old Yamuna Bridge Praygaraj) की दिलचस्प कहानी इससे पहले जानते हैं पुल के बारे में…..
ऊपर ट्रेन-नीचे रोड,यमुना में बोट
ओल्ड नैनी ब्रिज (Naini Bridge) के निचले डेक से दो पहिया और चार पहिया का आवागमन होता है यानी की निचला डेक सड़क यातायात के लिए खुला है जबकि ऊपरी डेक रेलवे लाइन के लिए. मतलब यह एक ऐसा पुल है जिसपर कार,बाइक के ऊपर ट्रेनें दौड़ती हैं और कार,बाइक के नीचे यमुना में बोट. एयरपोर्ट होने के कारण पुल के ऊपर आपको फ्लाइट्स भी देखने को मिल जाती हैं..ऐसे में यह कहना कि यहां एक साथ यातायात के सभी स्वरूपों को आसानी से देखा जा सकता है गलत नहीं होगा.
8 साल में तैयार और 168 साल से सुविधा दे रहा ऐतिहासिक पुल
इलाहाबाद यमुना ब्रिज (Yauna Bridge Allahabad) 15 अगस्त 1865 ट्रैफिक के लिए खोला गया. इसके निर्माण में लगभग 8 वर्ष लगे और इसका पूरा होना बहुत बधाई का विषय था. यह भारत के इतिहास में पहली बार, कलकत्ता और दिल्ली के बीच, ईस्ट इंडियन रेलवे द्वारा स्थापित अटूट संचार की लंबी श्रृंखला में मध्य कड़ी थी.
यमुना के पुराने नैनी रेलवे पुल (Old Naini Bridge Allahabad/Prayagraj) से रोजाना तकरीबन 200 से अधिक सवारी और माल गाडिय़ों गुजरती हैं.
नैनी और इलाहाबाद के बीच पुल का स्थान 1855 में ही तय कर लिया गया था. वास्तविक काम 1859 में शुरू हुआ और पुल 15 अगस्त, 1865 को जनता के लिए खोल दिया गया. तब तक पुल के दोनों ओर दिल्ली और हावड़ा के लिए रेल लाइनें बिछा दी गई थीं.
960 मीटर है पुल की लम्बाई
प्रयागराज का पुराने यमुना पुल की लंबाई 3,150 फीट (960 मीटर) है. इसमें 200 फीट (61 मीटर) के 14 स्पैन और 60 फीट (18 मीटर) के दो स्पैन शामिल हैं.
पुल के शीर्ष पर एक रेलवे लाइन और नीचे एक सड़क मार्ग है. इसे ईआईआर कंसल्टिंग इंजीनियर अलेक्जेंडर मीडोज रेंडेल और उनके पिता जेम्स मीडोज रेंडेल द्वारा डिजाइन किया गया था.
नीचे नींव की गहराई 42 फीट तक है और निचले जल स्तर से गर्डर के नीचे तक की ऊंचाई 58.75 फीट है.
गर्डर का वजन 4,300 टन है. अनुमान है कि इसमें लगभग 2.5 मिलियन क्यूबिक फीट चिनाई और ईंट का काम किया गया था. नींव एडवर्ड पर्सर द्वारा डिजाइन की गई थी.
44 लाख से ज्यादा के खर्चे से बना था प्रयागराज का पुराना यमुना ब्रिज़
1927-29 में, पुराने गर्डरों को नए से बदल दिया गया और निचले डेक को सड़क सेवाओं के लिए जोड़ा गया. ऊपरी डेक दो लेन की रेलवे लाइन है जो नैनी जंक्शन रेलवे स्टेशन को इलाहाबाद (प्रयागराज) जंक्शन रेलवे स्टेशन (Allahabad Junction Railway Station) से जोड़ती है.
इस पुल के निर्माण में उस दौरान 44 लाख 46 हजार तीन सौ रुपये खर्च हुए थे.
2007 में लकड़ी के स्लीपर की जगह स्टील चैनल स्लीपर लगाए गए और 2019 के कुंभ के दौरान इस पुल पर एलईडी और फसाड लाइट लगाई गई.
बनने में लगा था 6 साल..
– ब्रिटिश शासनकाल के सबसे पुराने पुलों में एक गऊघाट यमुना पुल (Yamuna Bridge), नायाब इंजीनियरिंग का नमूना नैनी ब्रिज हावड़ा-दिल्ली रेलमार्ग के प्रमुख पुलों में शामिल है. ब्रिटिश हुकूमत में व्यापार बढ़ाने के लिए ये रेलमार्ग तैयार किया था.
– इस हुकूमत में देश के 2 प्रमुख केंद्र दिल्ली और कोलकाता ही थे. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पहले 1855 में इस पुल को बनाए जाने की तैयारी शुरू हुई.
– इस दौरान लोकेशन भी तय कर ली गई.1859 में पुल बनाने का कार्य शुरू हुआ. इस पुल को बनाने में तकरीबन 6 साल का वक्त लगा.
निर्माण के वक्त 1 लेन ही था
– ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर सिवले की देखरेख में बने इस पुल में रेल आवागमन 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ. 3150 फीट लंबे इस पुल की कुल लागत 44 लाख 46 हजार 300 रुपए आई थी.
– इस पुल पर 14 लाख, 63 हजार, 300 रुपए के लोहे के ठोस गार्डर लगाए गए है. निर्माण के समय इस पर सिर्फ एक लेन ही थी, जरुरत बढ़ी तो 1913 में इसका दोहरीकरण किया गया. जबकि इसी रीगार्ड रिंग 1929 में हुई.
1 पिलर अकेले बनाने में लगा 20 महीने से ज्यादा समय
-नैनी रेलवे ब्रिज (Naini Railway Bridge) बनाए जाने के दौरान काफी मुश्किलें भी आईं. ओल्ड रेलवे नैनी ब्रिज की खास बात यह है कि इस पुल का एक पिलर हाथी पांव या यूं कहें कि शू शेप यानी की जूते जैसा है.
– इसके पीछे कई दंत कथाएं प्रचलित है. स्थानीय लोगों की माने तो कंपनी को नक्काशीदार पत्थरों के 14 पिलरों पर बनें इस पुल को बनाने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी.
– यमुना के पानी में तेज बहाव के चलते पिलर नंबर 13 को बनाने में सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी. पुल के और दूसरे पिलर 1862 तक लगभग बन गए थे लेकिन पिलर नंबर 13 को बनाने में करीब 2 साल का समय लग गया.
– दिनभर में जो पिलर ढलाई का प्लेटफार्म तैयार किया जाता था वह अगली सुबह तक नदी में बह चुका होता था. कोई भी इंजीनियरिंग का नमूना एक खंबे की नींव को टिका नहीं पा रहा था. लोग रात दिन मेहनत कर रहे थे लेकिन सारी मेहनत पर यमुना की धारा पानी फेर देती थी.
देखिए प्रयागराज का स्काई वॉक ब्रिज़
लोग बताते हैं ऐसी कहानी
– ‘पुल बनाने वाली कंपनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था, तभी संगम नगरी के एक तीर्थ पुरोहित ने इंजीनियरों को सलाह दी कि जब तक यमुना में मानव बलि नहीं दी जाएगी तब तक पुल निर्माण का कार्य पूरा नहीं होगा.’
– उस दौरान यमुना में एक बलि दी गई थी. जिसके बाद गऊघाट पुल का पिलर नंबर 13 तैयार हुआ. इस पिलर को तैयार करने के लिए पानी का स्तर 9 फीट नीचे कर कुंआ खोदा गया. इसके बाद ही यह बन सका.
पिलर न. 13 जूते के आकार का
– इस पिलर डिजाइन को हाथी पांव या जूते के आकार का बनाया गया, तब जाकर ये पिलर सफल हुआ. उसके बाद 3 पिलर और है.
इसे बनाने के लिए जलस्तर को 9 फीट नीचे ले जाया गया और तलहटी में राख एवं पत्थर का फर्श बनाया गया.
– इस पर 52 फीट व्यास का पत्थर की चिनाई का एक मेहराब बनाया गया था, जिसके ऊपर पिलर को हाथी के पैर का आकार दिया गया और इसने पुल को स्थिरता प्रदान की है.